भाखड़ा नांगल बांध की एक यादगार दिन‑भर की यात्रा
कल का दिन वाक़ई में अविस्मरणीय रहा—मैंने अपनी ज़िन्दगी में पहली बार भाखड़ा नांगल बांध की यात्रा की। यह सिर्फ एक तकनीकी चमत्कार नहीं था, बल्कि प्रकृति की गोद में बसी एक कलात्मक गाथा भी थी।
सुबह की शुरुआत – सुकून और उत्साह
सवेरे सूरज की पहली किरण के साथ निकलना—यादगार पल था। जैसे ही सड़क पर सूरज का उजाला बढ़ा, हवा में हलकी नमी और हरी-भरी धूप का संयोजन एक नई उमंग जगाता था। रास्ते भर खेतों की हरियाली ने मन को तरोताजा कर दिया।
सतलुज नदी के किनारे पहुँचते ही उस विशाल बांध की स्थिरता मेरे दिल को छू गई। उसकी ऊँचाई और बनावट में छिपे इंजीनियरिंग चमत्कारों को नजदीक से देखना—वास्तव में अद्भुत अनुभव था।
भव्य संरचना और प्राकृतिक वातावरण
बांध की दीवारें इतनी विशाल थीं कि नज़रों का थम जाना स्वाभाविक था। पानी की गर्जना, दीवारों से टकराकर उठने वाली ध्वनि और आसपास का विहंगम दृश्य मन को मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। छोटे-छोटे फव्वारे और गार्डन फिर से लौटने पर गणना में न आ सकने वाले फोटोग्राफ़र पलों का हिस्सा बन गए।
मैंने पानी के किनारे चलकर कई तस्वीरें खींचीं—हर एक फ्रेम में प्रकृति के अलग-अलग रंग बिखरे थे। बच्चों की खुशी, मछुआरों का शांत इंतजार, पक्षियों की चहचहाहट—ये सभी दृश्य मन को विश्राम दे रहे थे।
स्थानीय व्यंजन का स्वाद
दोपहर का समय था, तो हमने पास के ढाबा पर रुककर नाश्ता किया—गरमा-गरम आलू पराठा, स्वादिष्ट चटनी और अदरक वाली चाय। चटख रंग का स्वाद और स्थानीय स्वादिष्टता का मेल अद्वितीय था। कोर्ट चाहे सड़क किनारे हो या गार्डन, हर जगह हमने भारतीय मेहमाननवाज़ी की गर्मजोशी महसूस की।
रोमांचक वॉक और गहरी सोच
भाखड़ा बांध की ऊँचाइयों से नीचे उतरकर घाट की ओर वॉक करना अद्भुत था। नीचे से बांध का आत्मबल और दृढ़ता, ऊपर से विशाल बांध और विस्तार—इस विपर्यास ने मन को गहरे सोच में डाल दिया। प्राकृतिक ठंडक और कटरी हवा ने आंखों को आराम दिया।
यहां का वातावरण—चट्टानों की ठंडक, पानी की सरसराहट और हरियाली का साथ—एक तरह की मानसिक शांति प्रदान कर रहा था।
शाम का दृश्य और मन को छू लेने वाला क्षण
शाम का समय सब कुछ और भी ज़्यादा मोहक बना देता है—धीमी रोशनी, रंगीन ऑरेंज-गोल्डन स्काई और बांध की दीवारों पर सुनहरी आभा। देर से लौटने वाले पक्षी, हलकी सरसराहट, मंद हवाओं की खुशबू—इन सबका संगम था। बस बीच-बीच में कैमरे की “क्लिक” और खूबसूरत यादों का संग्रह।
व्लॉगर की दिग्दर्शिका—हर छोटे दृश्य को बड़े भाव से पकड़ना—देखकर लगा जैसे मैं उनके साथ ही वहां खड़ा हूं।
झील की गोद में बोटिंग – प्रकृति से संवाद का अनुभव 🚤
भाखड़ा नांगल डैम की यात्रा का सबसे रोमांचक हिस्सा रहा – गोबिंद सागर झील में बोटिंग। यह झील, जो इस बांध के जल से बनी है, न सिर्फ शांत और विशाल है, बल्कि उसकी सतह पर बहती हवा और हिलते पानी की लहरें मन को भीतर तक शांत कर देती हैं।
हमने टिकट लिया और बोट की ओर बढ़े। बोटिंग पॉइंट से चारों ओर फैली झील का दृश्य ऐसा था जैसे नीले आसमान का प्रतिबिंब पानी में उतर आया हो। सूरज की रोशनी झील पर पड़ रही थी और उसमें सुनहरी लहरें उठ रही थीं।
जैसे ही नाव धीरे-धीरे पानी में आगे बढ़ी, एक अलौकिक शांति का अनुभव हुआ। बोट की मोटर की धीमी आवाज़ और आसपास की चहचहाहट—सभी मिलकर एक संगीत सा रच रहे थे। दूर पहाड़ियों की छाया और झील के किनारे खड़े पेड़ों का प्रतिबिंब पानी में झूमता हुआ दिखता था।
बोटिंग के दौरान आसपास के पर्यटक भी खुश थे—किसी के हाथ में कैमरा, तो कोई सेल्फी लेने में व्यस्त। लेकिन मैं तो सिर्फ उस क्षण को महसूस कर रहा था। यह सिर्फ एक गतिविधि नहीं थी, बल्कि प्रकृति के साथ एक निजी संवाद जैसा अनुभव था।
बोटमैन ने झील के इतिहास और डैम की विशेषताओं के बारे में कुछ दिलचस्प बातें भी साझा कीं। उन्होंने बताया कि गोबिंद सागर न सिर्फ एक जलाशय है, बल्कि इसमें मत्स्य पालन और जल-खेलों की गतिविधियाँ भी होती हैं। इससे न केवल पर्यावरण संतुलन बना है, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है।
जैसे ही नाव वापसी की ओर मुड़ी, सूरज पश्चिम की ओर ढलने लगा था और झील की सतह पर सुनहरा रंग फैल चुका था। यह दृश्य कैमरे में तो कैद हुआ ही, लेकिन उससे भी गहराई से दिल में बस गया।
अंततः—मन की संतुष्टि
क़रीब ६–७ घंटे की इस यात्रा ने ना सिर्फ प्राकृतिक सौंदर्य का अहसास कराया, बल्कि तकनीकी कौशल और मानव-प्रकृति के संतुलन की गहराई भी दिखाई। बांध को देख कर गर्व हुआ—भारत की प्रगति और निर्माणशक्ति पर।
घर लौटते वक़्त, दिल में भारी संतुष्टि और आँखों में सुंदर दृश्यों की याद थी। अगली सुबह नींद जल्दी खुल गई—क्योंकि मन की आंखें ठीक-ठाक इन अनुभवों से भरी हुई थीं।
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